जीवन क्या है ?
जीवन क्या है?
अंधेरे कमरे में अमावस की रात में
गुम हुई काली बिल्ली तो नही ,
जो वहां पर है ही नहीं मगर ,
हर खोजने वाला आंख फाड़ कर ढूंढ रहा है वही।
मिलेगी तो मिलेगी कैसे क्या ढूंढना भी मूर्खता तो नहीं?
गलत सही की पहचान कर पाना जीवन है,
तो परिभाषा क्या है गलत और सही की?
आकांक्षाओं के अंबार लेकर चलते हो सर पर ,
मगर सोचा कभी सर तुम्हारा है या नहीं भी !
बहकी बहकी बातों को सत्य मानते हो असलियत में अस्तित्व के बारे में तुम क्या जानते हो ?
क्यों नाहक दौड़ते हो, जिंदगी ए जिद के पीछे
सोचे शांत होकर क्या खुद को भी तुम पहचानते हो ?
अपने मन के नौकर हो तुम,
अपने तन के चाकर हो तुम,
गुम होते हो वासनाओं में ,
अपने अस्तित्व के गुनहगार हो तुम।
जागो अब तो
मन के मालिक बनो ,
अस्तित्व के लायक बनो,
अनंत पुकार रहा ,
शून्य होकर जरा सुनो.....
..... ganesh darode.
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