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दे नैनो मे नैन मुस्काना नहीं |

 दे नैनो में नैन मुस्काना नही|  अदाओ के हत्यार चलाना नही,  नशे के जाम पिलाना नही,  हमे होश है ,हमे डूबाना नही,  मेरा हृदय जैसा पत्तो की इमारत है , बन के हवा , यहा वहा टहलना नहीं, दे नैनो मे नैन मुस्काना नहीं |  हिरण से लेकर चाल चलना नही , कोयल से लेकरं कंठ बोलना नही , सावन से लेकर बरखा बरसना नही ,  मेरा हृदय बर्फ का बना है ,  बन के आग निकट आना नही , दे नैनो मे नैन मुस्काना नही |  लिखते थे हम ईश्वर पर गजले , तुम्ही को मान बैठे है , जैसे वह दिखता नही तुम भी दिखना नही , एकांगी खेल है सारा बन कर दुसरा आना नही , मन के मंदिर मे हमारे बन कर शराबी घुस जाना नही ,  मेरा हृदय जैसे राहू- केतु का शरीर है  तुम बनकर अमृत बरसना नही , दे नैनो मे नैन मुस्काना नही|  बुद्धी की गहराईयो मे छबिया बन कर रहना नही ,  अंतस की वादियो मे सपने बन कर छाना नही ,  भावनाओ मे मेरी आसू बनकर टपकना नही ,  मेरा हृदय जैसे कृष्ण की बासुरी है  मनमंदिर से उसे चूरा कर बजाना नही , दे नैनो मे नैन मुस्काना नही |  सब समझते है आपके दिवानगी के आयाम ...

जीवन क्या है ?

 जीवन क्या है?  अंधेरे कमरे में अमावस की रात में  गुम हुई काली बिल्ली तो नही , जो वहां पर है ही नहीं मगर , हर खोजने वाला आंख फाड़ कर ढूंढ रहा है वही। मिलेगी तो मिलेगी कैसे क्या ढूंढना भी मूर्खता तो नहीं?  गलत सही की पहचान कर पाना जीवन है,  तो परिभाषा क्या है गलत और सही की?  आकांक्षाओं के अंबार लेकर चलते हो सर पर , मगर सोचा कभी सर तुम्हारा है या नहीं भी ! बहकी बहकी बातों को सत्य मानते हो असलियत में अस्तित्व के बारे में तुम क्या जानते हो ? क्यों नाहक दौड़ते हो, जिंदगी ए जिद के पीछे  सोचे शांत होकर क्या खुद को भी तुम पहचानते हो ?  अपने मन के नौकर हो तुम,  अपने तन के चाकर हो तुम,  गुम होते हो वासनाओं में ,  अपने अस्तित्व के गुनहगार हो तुम।  जागो अब तो  मन के मालिक बनो , अस्तित्व के लायक बनो,  अनंत पुकार रहा , शून्य होकर जरा सुनो.....           ..... ganesh darode.