रहस्यमय...

 राज् की यह बात है जो 

आज मैं कागजी लिख रहा हूं 

बचपन में जो सिखा करता था मैं ,

वह आज भी सीख रहा हूं 


खेल है यह ऐसा कि 

जो लफ्जों में ना आता उसे लिखना है,

 जो ना आता इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में 

उसे खुली आंखों से देखना है |


रहस्यमय् है कुछ तो 

जो कुछ बिरलो ने जाना था,

 अद्भुत्,अकल्पनीय जो

 कान्हा भी समझा ना पाया था ,

वेद ,पुरान ,बाइबल, कुरान 

कोई भी पहेली को सुलझा न पाया था|


 अग्येय् की बात है ज्ञात अज्ञात से विभिन्न,

 सुनके अष्टावक्र से जनक भी हो गया था सुन्न्|


अद्वैत को समझाते हुए जिसे बुद्ध ने कहा था शून्य ,

शाश्वत की व्याख्या करते हुए जिसे ओशो ने कहा था चैतन्य |


कहे कबीर सुनो भाई साधो छोड़ो भ्रम जाला,

 कहती मीरा बावली होकर पियो प्रेम रस प्याला |


 साइंस के चुंगल से वह मीलों दूर है 

ऐसे ही हाथ ना आता बहुत चतुर है 


उसे देखना हो तो आत्महत्या करनी पड़ती है ,

खुद के अस्तित्व को श्रद्धांजलि देनी पड़ती है |


अहंकार को विसर्जित करके 

नया जन्म लेना पड़ता है ,

कामनाओ, वासनाओ, भावनाओं को 

जला देना पड़ता है ,

मन की जंजीरों को तोड़ कर 

मुक्त होना पड़ता है ,

इसी परम स्वतंत्रता को 

मोक्ष कहा जाता है|



....Ganesh Darode

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