समन्दर के हम।

 .

Here consider 

हवा_ मनुष्य का मन 

बादल _ मनुष्य

समंदर _ परमात्मा या अस्तित्व ।


                समंदर के हम ।

   कबूल नहीं है हमें तेरे आशियाने हम तो खुले आसमान के बादल है,। 

    हमसे जरा दूर रहना ए हवा हम तो बरसने को ही पागल हैं 


माना तुम्हारी जिद है हमें मनचाहा मोड़ने की,

 कहीं भूल मत जाना हमारी बिजली को भी खुजली है कड़कने की।


 हम समंदर के खून हैं

 इतनी जल्दी कहां पकड़ में आएंगे ,

सूरज ने दिए हैं हमें पंख तिलस्मी 

लोहे की बेडियो में नहीं जकड़ जाएंगे ।


नहर नदिया तालाब सूख गए हैं चाहे तो हमें वहां ले चल ए हवा, 

हमारी तो फितरत ही है खुद को मिटा कर दूसरों को जीलाना।


 मनमानी छोड़ दे अपनी

 देख मैं क्या लाया हूं,

 जो तू देख रही है बाफ मेरे भीतर 

उस में छुपा कर मैं जल लाया हूं ।


 देख कोई दुश्मनी नहीं है मेरी तुझसे

बस दिल की एक ही गुजारिश है,


 भूलकर भी समंदर पर ना गिराना ना और ना छोर साला अपने में समा लेता है ,

फिर पता नही चलता कोण में कोण समंदर , जमीन से समंदर तक का सफर अलग ही मजा आता है।


             ~ ganesh darode

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