Posts

Showing posts from October, 2021

समन्दर के हम।

 . Here consider  हवा_ मनुष्य का मन  बादल _ मनुष्य समंदर _ परमात्मा या अस्तित्व ।                 समंदर के हम ।    कबूल नहीं है हमें तेरे आशियाने हम तो खुले आसमान के बादल है,।      हमसे जरा दूर रहना ए हवा हम तो बरसने को ही पागल हैं  माना तुम्हारी जिद है हमें मनचाहा मोड़ने की,  कहीं भूल मत जाना हमारी बिजली को भी खुजली है कड़कने की।  हम समंदर के खून हैं  इतनी जल्दी कहां पकड़ में आएंगे , सूरज ने दिए हैं हमें पंख तिलस्मी  लोहे की बेडियो में नहीं जकड़ जाएंगे । नहर नदिया तालाब सूख गए हैं चाहे तो हमें वहां ले चल ए हवा,  हमारी तो फितरत ही है खुद को मिटा कर दूसरों को जीलाना।  मनमानी छोड़ दे अपनी  देख मैं क्या लाया हूं,  जो तू देख रही है बाफ मेरे भीतर  उस में छुपा कर मैं जल लाया हूं ।  देख कोई दुश्मनी नहीं है मेरी तुझसे बस दिल की एक ही गुजारिश है,  भूलकर भी समंदर पर ना गिराना ना और ना छोर साला अपने में समा लेता है , फिर पता नही चलता कोण में कोण समंदर , जमी...

मयखाने की मस्ती।

 मैंने ढूंढा है हर एक आवाज में प्यार मेरे लिए , मजा तो तब आया जब तेरी खामोशी में प्यार पा गए। मजधार में थी मेरी नाव, हमकिनार होने को बेकरार थी मेरी नाव,  न जाने क्या हुआ तुझे सरफिरे डूबा दी तुमने मुझ समेत पूरी नाव।  तेरे किसी फैसले को ना नहीं कहूं यही मेरी तेरे से आशिकी है,  तू कहीं डूबा दे मैं खुशी से डूब जाता हूं कौन कहता है यह इश्क नहीं यह इश्क ही है।  ये मेरे प्रियतम, हमसफर, हमनशि, क्यों चुप है तू आज, कुछ तो बोल,  जानता हूं शर्मिंदा है चाहे झूटा हो सच लेकिन सच तो बोल । अनंत की याद दिला कर मुझे शून्य तो कर गया  चलो अनंत की बात बता कर कुछ पुन्य तो कर दिया  पता नहीं मुझे आंखें देकर तू कब ओझल हो गया आंखों से , देख लेते तुझे एक बार कमबख्त होती जो आंखें पहले से....।         ~ ganesh darode

अस्तित्वप्रेमी

 कसूर नहीं है चांद सितारों का , फितूर तुम्हारा नीचे देख कर चलना है । कभी नजरें ऊपर तो उठाओ  छुपे नहीं कहीं चांद सितारे  बस नजरे उठाना है।  कसूर नहीं है हीरे जवारातो का  फितूर तुम्हारा कंकड़ पत्थर पकड़ना है  कभी आंखें खोल कर देख तो लो,  कमी नहीं है हीरे जवारतो की  तुम्हे बस आंखों का इलाज करवाना है।  तुम ना जाने किस दुनिया की सरहद हो चुके हो,  ढूंढना खुदा को चाहते हो और खुद नदारद हो चुके हो । आओ भी कभी अपने घर  अपने घर में मेहमान तो बनो , ढूंढते ढूंढते अपना घर, कभी परेशान तो बनो। ना जाने किस प्रेम का झासा देकर फसा रहा है मुझे, खुद ही हाथो में मेरे रखकर अंगारे बेशरमो की तरह हसा रहा है मुझे। गिराए तो गिराए कितने हम आंसू ,  याद में तेरी , मुलाकात में तेरी पता नही दुख यह विरह का है, या प्रेम की बरसात है तेरी। दीवाने है हम सरफिरे और पागल भी ,तूने अपना नशा जो पिलाया है, दिया था झासा खुद को जानने का ,खुदा ने मुझको मिटाकर खुदको खुदा बनाया है।         ~ ganesh darode