काव्यरस
काव्यरस
तुम नश्वर हो तो भावों में अमृत्व कहां से लाओगे ?
तुम ईश्वर को यूं ही राहों में खोज नहीं पाओगे ।
कभी तुमने आंख खोलकर देखा है सुबह का नजारा
कभी तुमने जागकर पिया है प्रेम का प्याला
कभी तुमने जानकर जिया हो जीवन ज्वाला
तुम खुद को समझते क्या हो,
उसकी आंधी में हलकोरो में बह जाओगै
तुम नश्वर हो तो भावों में अमृत्व कहां से लाओगे
तुम ईश्वर को यूं ही राहों में खोज नहीं पाओगे
मुश्किल है प्रेम डगर कमजोर है नारी नर
भक्ति से अपनी परम शक्ति को ना जान पाओगे
क्या तुमने देखी है सूरज की शीतलता
क्या तुमने देखी है फूलों की जड़ता
क्या तुमने देखी है गुड़ की कटुता
जरा देखो मेरी आंखों से
पेड़ों में वही लहरा रहा
कीड़ोंमें वही रेंग रहा
पक्षियों में वही गा रहा
जानवरों में वही नाच रहा
नदियों में कल-कल उसका ही तो गीत है
समुंदरों में आंधी उसका ही तो संगीत है
भंवरों की कमलों से जो गहरी प्रीत है
सावन की सुबह में वही पल्लवित है
क्या सोचकर तुम आस्तिक या नास्तिक बने हुए हो?
तुम खाली एक बूंद हो क्या तुम सागर को जान पाओगे
तुम नश्वर हो तो भावो में अमृत्व कहां से लाओगे
तुम ईश्वर को यूंही राहों में खोज नहीं पाओगै।
~ ganesh darode
Nice 👍
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