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Showing posts from September, 2021

Kabir fraganance

सांसे से अंदर आ रही है,  बाहर भी तो जा रही है l देखो तुम ध्यान से जरा , प्राण कहासे ला रही है l कोण मुल्ख से आये तुम , कोण देश को जाओगे l कौन भेस से आये तुम,  कोन भेस् को पाओगे l अहम ब्रह्मास्मि कह कर तुम  ध्यान लगावत कैसे हो , बाहर गंदा भितर गंदा  ध्यान लावत कैसे हो।  खुद ही खुदको ना पहचाने  ग्यान बतावत कैसे हो , खुदही खुदको ना जाने  खुदा को जान पावत कैसे हो l कहा से आये ,कहा जाओगे?  जरा होश तो संभालो,  मन के जाल मे फस कर ऐसे  अमृत को ना टालो l  जरा देखो तो खुद को,  क्या हो तुम ? कौन हो तुम ? कहा से हो तुम ? कैसे हो तुम ? क्यू हो तुम ?  जिनकी चींता मे तू जलता  वही तेरी चिता जलाते है,  जिनके लिए रक्त बहाया जलसम  जल मे वही बहाते है l जिनके लिए तुमने सुख ना छुआ,  छुने के बाद तुम्हे हात धुलाते हैl  किस माया मे पड गये तुम, किस उलझन मे फस गये ? जरा आंख तो खोलो, होश संभालो  किस देश मे सो गये।              ~ ganesh darode

छुपा है कुछ तो कही ,

 छुपा है कुछ तो कही। छुपा है कुछ तो कही,  यही वही हर जगह वही l ऐसी जगह नही जहा वह छुपा नहि l  छुपा है कुछ तो कही , क्या राज है पता नही  चलती हुई सासो का l क्या राज है पता नही  दौडती हुई नसो का l क्या राज है पता नही  जिंदगी के इन पडते हुए पांसो काl  छुपा है कुछ तो कही , यही वही हर जगाह वही , ऐसी जगह नही जहा वह छूपा नहीl  ना जाणे कैसी माया है, न जाने कैसे शक्ती l पल मे आना पल मे जाना, पल मे मिट जाती हस्ती l पल मे मुस्कुराना ,पल मे रोना  पल में बिखर जाती बस्तीl  पल मे घृणा ,पल मे प्यार , पल मे उतर जाती मस्ती l छुपा है कुछ तो कही ,  यही वही हर जगह वही l  अत्यंत सूक्ष्म अत्यंत बारीक, ओर अनंत भी वही l  अनंत ध्वनी, अनंत नाद और अनहद भी वहीl वही काम, वही क्रोध वही लोभ, ओर वैराग्य भी वहीl वही छल कपट घृणा , ओर सनातन धर्म भी वही l वही कर्ता वही भोक्ता वही बोलता  और सूनता भी वही l  केवल्य का खेल है,  मानवी अकल के परे  निराकार का खेल है , किसी शकल के परेl    छुपा है कुछ तो कही,  यही वही हर जगह व...

स्वकर्म से स्वधर्म तक।

स्वकर्म से स्वधर्म तक।  स्वकर्म से स्वधर्म तक तू चल आखरी पर्व तक  जीवन के इस महाभारत मे तू अर्जुन नही तू कर्न बन । लोहे की शय्याए छोड तू तू तांबा नही सुवर्ण बन । क्यों समझता खुदको एक तुच्छ पर्ण   तू पुरा एक अरण्य बन।  छोटो से लड़कर क्या जीतता तू बड़े से लढ़ अजिंक्य बन ,यशोगाथा तेरी 1,2 नही चली जा रही असंख्य तक।  स्वकर्म से स्वधर्म तक तू चल आखरी पर्व तक  जीवन के इस महाभारत मे तू अर्जुन नही तू एकलव्य बन  छोटी छोटी कामनाए लेकर छोटा जीवन क्यों जीता तू  इस महाजीवन के महापर्व का तू महामर्म बन। यह वह को छोड तू तू ही अब सर्व बन   बांधले संकल्प का बान जब तक है त्रान तू कर जतन , नूतन तेरा जीवन है नूतन तेरा प्राण  नूतन एक संकल्प लेकर तू सर्वशक्तिमान बन। स्वकर्म से स्वधर्म तक तू चल आखरी पर्व तक,  जीवन के इस महाभारत मे तू कृष्ण नही शकुनि बन। पर्वत तेरा रास्ता रोकने आयेंगे अपना गुण छोडकर पत्थर से बवंडर बन,  जीवन के सागर में जो कोई लहर तेरी नाव डुबाए अपना गुन छोडकर सुनामी भयंकर बन । स्वकर्म से स्वधर्म तक तू चल आखरी पर्व तक जीवन ...

काव्यरस

 काव्यरस तुम नश्वर हो तो भावों में अमृत्व कहां से लाओगे ? तुम ईश्वर को यूं ही राहों में खोज नहीं पाओगे ।  कभी तुमने आंख खोलकर देखा है सुबह का नजारा  कभी तुमने जागकर पिया है प्रेम का प्याला  कभी तुमने जानकर जिया हो जीवन ज्वाला  तुम खुद को समझते क्या हो,  उसकी आंधी में हलकोरो में बह जाओगै  तुम नश्वर हो तो भावों में अमृत्व कहां से लाओगे  तुम ईश्वर को यूं ही राहों में खोज नहीं पाओगे  मुश्किल है प्रेम डगर कमजोर है नारी नर भक्ति से अपनी परम शक्ति को ना जान पाओगे क्या तुमने देखी है सूरज की शीतलता  क्या तुमने देखी है फूलों की जड़ता  क्या तुमने देखी है गुड़ की कटुता    जरा देखो मेरी आंखों से  पेड़ों में वही लहरा रहा  कीड़ोंमें वही रेंग रहा  पक्षियों में वही गा रहा  जानवरों में वही नाच रहा  नदियों में कल-कल उसका ही तो गीत है  समुंदरों में आंधी उसका ही तो संगीत है  भंवरों की कमलों से जो गहरी प्रीत है  सावन की सुबह में वही पल्लवित है  क्या सोचकर तुम आस्तिक या नास्तिक बने हुए हो?  तुम ख...

ए मेरे प्रेमी

 ए मेरे प्रेमी। मत करो इतनी वर्षा अमृत की, मैं झेल नही पाऊंगा l  ना जाणे क्यू भेज दिया मुझे इस खेल मे,  मैं खेल नही पाऊंगा l आंखों से आंसु बहते है , बहते है तो रुकते नहीं , जमाना दीवाना कहने लगा हमे , हम तो कुछ समझते नही l इतना भी समझते नही ,ए मेरे प्रेमी l  यह आंसु बिछड़ने के है या मिलन के l तू ही बतादे कुछ तो सही, कुछ तो     रहम कर ,हम तो तुझको भी जानते नही। शिकस्त ए दिमाग तो कबका हो चुका ।  दीवाना ए दिल तो कबका हो चुका l तू क्यों मुझे ऐसे तड़पा रहा , यकीन मेरा समय से कबका उड़ चुका l   अस्तित्व मेरा क्यों है ,  क्यों है अस्तित्व सारा?  क्यों है यह नजर , और क्यों है यह नजारा? ए मेरे प्रेमी जरा खबर तो दे  कहा हैं तेरा ठिकाना । मैने तो ढूंढना अब छोड़ दिया , तू ही मुझे अब ढूंढना । पता चल जाए मेरा तो मेरे हमसफर  मुझे जरूर बताना। ~ astitvapremi Ganesh darode🙏